देखा चीटी को,
उसकी लघुता को,
थी कमजोर,
क्या करने के काबिल थी,
परंतु कर्म धार की तलवार से,
अद्भुत अदम्य साहस दिख रही थी।
हार की निराशा,
शायद कोई हो,
जो टूटता न हो,
पर टूट ही जाता है,
आखिर कब तक दिखाए अपने साहस को,
टूट कर बिखर ही जाता है।।
काश , ऐसा आदमी ,
एक बार देखे
चीटी को,
उसकी लघुता को,
और फिर अपने से दो गुने,
भारी वजन के साथ,
दीवार पर चढ़ना,
गिरना और फिर चढ़ना,
गिर गिर कर चढ़ना,
हर न मानना ,
मंजिल को पहुचकर ही,
रुकना,पहचान है उसकी,
धारण करलो छोटी सी
सीख उसकी,
होंगे नही कभी लाचार,
पार कर लोगे ,
हर इम्तिहान,
जीवन के सम्राट बनोगे ।।
.......sangjay