दो पल है जीवन के
मिलजुल कर इसको जीना।
आजादी है सबको प्यारी
क्यों है इतनी बेकारी।
तकरार यहां क्यों करना
छणभंगुरता हित लड़ना।
क्यो मानव उलझ गया है
निज जाल में फसता गया है।
एकता के साथ जीना,
मानवता का मूल है।
अपनो के खातिर गर हारना क़ुबूल है।
सबका भला करोगे ,
तब खुद का भला भी होगा।
लाचारों की मदद सम ,
और कुछ भी भला न होगा।
परहित प्रकृति में देखो,
कण कण बता रहा है।
खामी कभी न देखो
खूबी तलाशना सीखो ।
काम आए न गर मानवता हित,
जीवन यहाँ बेकार है ।
परहित सरिस हो जीवन,
सबसे बड़ा आधार है।
......Sangjay
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