गरीब का जीवन,
कैसा बंधन जो बांधता है।
लाचारी की जंजीरो से,
वरना कौन है साहब ,
जो खुद को बदनसीब बनाता है।
दुख भारी आह सुनता है,
जब गम भरे रेन दिन आते,
पर दुख दूर कभी न होते,
हरपल हर छण वो अश्रु बहते।
ईश्वर को आह सुनते,
गम भरी निशा का अंत होगा कब,
इंतजार वो करते,
ख्वाबो के महल सजाते,
ख्वाबो में लुत्फ उठाते,
हक़ीक़त का क्या वजूद,
गम ही गम जब आते।
किया हमेशा मदद ,
मजबूर की वो जनता है,
गरीबी का दर्द,
परंतु जिसके पैर न फटी बिवाई,
सो का जाने पीर पराई,
बात यह मैं कहता हूं।
लाचारी कैसी ह उनकी,
मदद करे भगवान दुवा ,
मैं करता हूं ।।
.....sangjay
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